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कुछ अनलिखे

आज कुछ लिखने में हिचक सी हुई...  ऐसा लगा हमारी भारत माँ सिसक रही हो. उसके सारे कोने आज खुश नहीं हैं , कहीं आग दहक रहें हैं ,कहीं दंगे फसाद हैं।  आगे राह नयी तो दिख रही है , विश्व पटल पर देश का गुमान नज़र आ रहा है , पर देश के अंदर एकजुटता का अभाव है , जैसे कोई घायल उम्मिदवार रेस जीतने की होड़ में हो |  हम देश की स्वर्णिम काल में  हम ऐसे मोड़ पर हैं , जहाँ तारों तक हमारी पहुँच बहुत पास है , परन्तु बादलों के आड़ में  तारे ओझल हो गए हों , इन बादलों के छँटने से शायद एक नयी रोशनी आये | 
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उन्मादित पतंगा

उन्मादित पतंगा कभी सोच में डूबी यही , जाने तू कहाँ से आई, लगा के पंख उड़ चली, पर क्यों आई इठलाई ? किसी ने कभी प्यार से सहलाया या फुसलाया? इस लिबास को किसी ने सराहा ? या बस यूँहीं दीवारें फांद फांद कर बौरायी, ख़ुद पे यूँहीं ठिठलाई।

पितृ दिवस की शुभकामना !!

खुद की कोई चाहत नहीं , खुद के लिए कुछ लिया नहीं , बच्चे ने एक बार मांगा , बस हाजिर कर दिया ||  जब हम छोटे थे , पापा से बात करते डरते थे ,  बातें मां की तरफ से कहलवाते थे , हर एक जिद को अप्रत्यक्ष रूप से मनवाते थे , पर वो पूरे  हो जाते थे ||  सामने से प्यार जताना आता नहीं जिन्हें , दूर से ही ख्याल रखते हैं , बाहर सख्त पर अंदर नरम , जिम्मेदारियों से भरे होते हैं हर एक क़दम  || 

प्रिये मेरे कुछ बोल दूँ क्या ?

प्रिये मेरे कुछ बोल दूँ  क्या ? पीछे मोड़ कर सोच रही थी..  कुछ किस्से बयां कर दूं क्या ? यादों के पन्ने खोल दूं क्या ? पर ना, अब क्या रखा है  इन सब चीज़ों में, बेकार की ये तो बातें हैं, ये अल्फाज बस स्वरों के  समूह हैं, ना इनके एहसास इनके साथ हैं, ना इसमें कोई संवेदना , फिर भी सोचती हूं , यादों को मैं  निकल ही दूँ , खत्म कर दो उन बचीखुचे यादों को  , क्यों जगह बना रखे हैं, एक बार निकल जाएं तो, जी हल्का हो जाए |  तुम ही बोलो प्रिये मेरे कुछ बोल दूं क्या ? कुछ भड़ास तुम भी निकल देना , जी हल्का तुम भी कर लेना , इस रिश्तो का कुछ नाम देकर , उसे  यूहीं ख़त्म कर देना  | 

मैं बच्ची ही रहना चाहती हूं

मैं बच्ची ही रहना चाहती हूं , और चाहती हूं कि सब बच्चे ही रहें |  इस दुनिया के खेल में, जीतने  की होड़ में , सब मदारी बने हुए हैं , लोगों को सच्ची झूठी की गोलियां पिला रहे हैं , और इसको डिप्लोमेसी बोल रहे हैं |  इन्हें इस दुनिया में जीवित रहने का यही मंत्र पता है. लड़ो , गिराओ  और अपना रास्ता बनाओ ||  जी चाहता है इनके कान मरोड़ूँ , और बैठा दूं बच्चों की कक्षा में और बोलूं , सीख इनसे जिंदगी जी कैसे जाती है , दुनिया की भाषा क्या होती है, और लोगों को कैसे पढ़ा जाता है || 

Cupid's Arrow

In the midst of war and havoc, finally something good is here to spread love. Saint Valentine too would have never thought that in his remembrance Valentine Day will be celebrated which will spread love to each and everyone. He would never have thought that he will be guided light of  love. His fragrance of love will shower everywhere new life and strength. In this valentine week, cupid's arrow is aiming again to all angelic lovers. Angel of love is roaming around to spread their much possessed love to each and everyone. Love in the nascent form is the purest form. Its just love which is like fragrance which spread everywhere giving happiness. It is just like flowing water which flows without obstruction. Love is like an innocent child, who always makes everyone happy. Love is there to spread love to each and everyone. Love loses its innocence when it gets attached to our senses. Love loses its dignity when we try to impose love and give the form of attachment, possessiveness. 💘💘

आज़ादी

जब देखी  थी उन्होनें , आज़ादी की रंगीन तस्वीर , उन्होनें संवारना चाहा था , अपने भारत की ज़ागीर , इस स्वप्न के साथ कि  भारत का नया श्वास होगा , उसमें एक नया रक़्त संचार होगा  ||  क्या जानते थे वो कि , आज़ादी झंकृत होगी , विदेशियों से नहीं , हम खुद से पराधीन होंगे , धर्म, जाती , पाँति के नाम पर  दंगे होंगे , अपना देश बोलकर , प्रांतो में विभक्त होंगे , राजनीति जन  कल्याण से परे होगी , और हम बस तमाशबीन होंगे ||  आज इस आजादी की अमृत काल , में हम सब प्रण लें , गाँधी ,कलाम को रोने न दें , स्वतंत्रता  सेनानियों का बलिदान खोने न दें , उनके स्वप्नों का भारत  सोने न दें  ||