आज कुछ लिखने में हिचक सी हुई... ऐसा लगा हमारी भारत माँ सिसक रही हो. उसके सारे कोने आज खुश नहीं हैं , कहीं आग दहक रहें हैं ,कहीं दंगे फसाद हैं। आगे राह नयी तो दिख रही है , विश्व पटल पर देश का गुमान नज़र आ रहा है , पर देश के अंदर एकजुटता का अभाव है , जैसे कोई घायल उम्मिदवार रेस जीतने की होड़ में हो | हम देश की स्वर्णिम काल में हम ऐसे मोड़ पर हैं , जहाँ तारों तक हमारी पहुँच बहुत पास है , परन्तु बादलों के आड़ में तारे ओझल हो गए हों , इन बादलों के छँटने से शायद एक नयी रोशनी आये |