ए क औरत घर छोड़ आई तुम्हारे आंगन सजाने को । अपनी खुशियों की सेंध लगा आ गई खुशियां फैलाने को । पर एक बार न तूने उसको देखा न स्वीकार किया । अपने अहंकार में तूने उसको दुत्कार दिया । वो क्या बोले बेजुबान अबला नारी उसने अपनी जिंदगी वैसे स्वीकार किया । बस यही आस लगाए बैठी है अंदर समय कब करवट लेगा और होगा भाग्य पलट । पर न इंतजार करना किसी की यह है मेरी सीख । तू शक्ति है , तू जन्मदात्री मत मांग दया की भीख । तू उठकर चलकर आगे बढ़ दे दुनिया को यह पाठ। मैं नहीं अबला , मैं नहीं कोमल मैं हूं शक्ति का भंडार ।।