जब देखी थी उन्होनें , आज़ादी की रंगीन तस्वीर , उन्होनें संवारना चाहा था , अपने भारत की ज़ागीर , इस स्वप्न के साथ कि भारत का नया श्वास होगा , उसमें एक नया रक़्त संचार होगा || क्या जानते थे वो कि , आज़ादी झंकृत होगी , विदेशियों से नहीं , हम खुद से पराधीन होंगे , धर्म, जाती , पाँति के नाम पर दंगे होंगे , अपना देश बोलकर , प्रांतो में विभक्त होंगे , राजनीति जन कल्याण से परे होगी , और हम बस तमाशबीन होंगे || आज इस आजादी की अमृत काल , में हम सब प्रण लें , गाँधी ,कलाम को रोने न दें , स्वतंत्रता सेनानियों का बलिदान खोने न दें , उनके स्वप्नों का भारत सोने न दें ||