Skip to main content

Posts

Showing posts from March, 2023

प्रिये मेरे कुछ बोल दूँ क्या ?

प्रिये मेरे कुछ बोल दूँ  क्या ? पीछे मोड़ कर सोच रही थी..  कुछ किस्से बयां कर दूं क्या ? यादों के पन्ने खोल दूं क्या ? पर ना, अब क्या रखा है  इन सब चीज़ों में, बेकार की ये तो बातें हैं, ये अल्फाज बस स्वरों के  समूह हैं, ना इनके एहसास इनके साथ हैं, ना इसमें कोई संवेदना , फिर भी सोचती हूं , यादों को मैं  निकल ही दूँ , खत्म कर दो उन बचीखुचे यादों को  , क्यों जगह बना रखे हैं, एक बार निकल जाएं तो, जी हल्का हो जाए |  तुम ही बोलो प्रिये मेरे कुछ बोल दूं क्या ? कुछ भड़ास तुम भी निकल देना , जी हल्का तुम भी कर लेना , इस रिश्तो का कुछ नाम देकर , उसे  यूहीं ख़त्म कर देना  | 

मैं बच्ची ही रहना चाहती हूं

मैं बच्ची ही रहना चाहती हूं , और चाहती हूं कि सब बच्चे ही रहें |  इस दुनिया के खेल में, जीतने  की होड़ में , सब मदारी बने हुए हैं , लोगों को सच्ची झूठी की गोलियां पिला रहे हैं , और इसको डिप्लोमेसी बोल रहे हैं |  इन्हें इस दुनिया में जीवित रहने का यही मंत्र पता है. लड़ो , गिराओ  और अपना रास्ता बनाओ ||  जी चाहता है इनके कान मरोड़ूँ , और बैठा दूं बच्चों की कक्षा में और बोलूं , सीख इनसे जिंदगी जी कैसे जाती है , दुनिया की भाषा क्या होती है, और लोगों को कैसे पढ़ा जाता है ||