बचपन खेला बड़े हुए ...
फिर छोड़ गये हम तुझको
मुड़ के ना देखा एक बार भी
ना सोचा कभी
कि होगी तुझे हमारी ज़रूरत भी
हम खुश थे भूल कर तुझे माँ...
उस दुनिया में जो ना था हमारा ....
जिससे ना था कोई अपनापन....
पर आज याद आई है तू फिर
आँसू छलक पड़े आँखों से
ना जाने कैसे भुला दिया तुझको...
तेरी गोद में ही खेला जीवन सारा...
प्यार भी तुझसे ही पाया....
तेरी रज़ से था प्यार मुझे माँ
और कहूँ क्या ज़्यादा...
तुझपर शीश नवाऊं मैं
अपना जीवन सारा...
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