शिक्षक याद हमें इस दिन ही आते हैं ,
जाने कितनी तकलीफों से हमें पढ़ाते हैं ,
हम बस ये कह देते हैं , कि ये इनका व्यवसाय है,
पर नहीं, ये अपनी वेतन से कहीं ज्यादा हमें सिखाते हैं ||
देखा जाये तो इनका ओहदा माँ बाप के समान है ,
पर हम इनका कुछ ख्याल न रख पाते हैं ,
ये निस्वार्थ हमें वो देकर जाते हैं ,
जो हम कभी न चुका पाते हैं ||
अगर शिक्षक का घर देखो तो रो दोगे ,
तुम पढ़ लिखकर महल अटारियों में रहते हो,
ये अभी भी उसी छोटे से घर में ,
कुछ पैसों की तंगी में रहते हैं ||
आजकल शिक्षा व्यापार की तुलना होती है ,
शिक्षण संस्थानें जेबें भड़तीं हैं ,
पर शिक्षक तो उसी मुहाने पर खड़ा मिलता है,
जहां वो अपनी आमदनी और समर्पण के बीच फासला देखता है ||
अंतिम पंक्तियां कटु सत्य हैं
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